दुनिया का सबसे बड़ा पशु धन हमारे देश में है। ऐसे में सरकार का ध्यान अब इसे स्वस्थ, सुरक्षित और समृद्ध रखने पर गया है। इसके लिए वह नए साल में देश भर के गांवों में डॉक्टर खिलावन नियुक्त करने की तैयारी में है। विश्व बैंक की मदद से बनाई गई इस परियोजना की लागत 400 करोड़ रुपये है। आंध्र प्रदेश, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की कुछ चुनिंदा जगहों पर अब तक ये डॉक्टर कामयाब रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पशु चिकित्सा क्षेत्र सर्वाधिक उपेक्षित होने से देश में हर साल लाखों पशु बेमौत मारे जाते हैं। इसके प्रति राज्य सरकारें बेहद उदासीन हैं। दुधारू पशुओं के प्रजनन और दूध उत्पादकता में वे बहुत नीचे हैं। इसमें सुधार के लिए विश्व बैंक की मदद से शुरू हो रही स्वास्थ्य परियोजना से पशुओं की बीमारी का इलाज आसानी से हो जाएगा और गांव के अल्प शिक्षित बेरोजगार युवकों को रोजगार मिल जाएगा। यानी वे गांव के खिलावन डॉक्टर बन जाएंगे। इन्हें पशुओं के स्वास्थ्य और उनकी बीमारियों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्हें दवाइयों का बैग भी थमाया जाएगा। पशु चिकित्सा सहायकों के लिए ऐसे ग्रामीण युवाओं का चयन किया जाएगा, जो पशुधन से भलीभांति परिचित होने के साथ गांव में ही रहते हों। पशु चिकित्सा की डिग्री के बगैर ये डॉक्टर पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान कराने में सक्षम होंगे। इस परियोजना का उद्देश्य उन्नत प्रजाति के पशुओं के वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान कराना, लुप्तप्राय पशुओं का संरक्षण, संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीकाकरण और पशुओं का फौरी इलाज करना है। प्रायोगिक परियोजना में पशु पालकों के बीच इन चिकित्सा सहायकों की साख बढ़ी है। केंद्र की परियोजना के तहत कई राज्यों में 20 हजार ऐसे चिकित्सा सहायकों की नियुक्ति की जा चुकी है, जिन्हें पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान के लिए प्रशिक्षित किया जा चुका है। इन कार्यकर्ताओं को प्रायोगिक परियोजना में एकमुश्त 3,000 रुपये दिए गए थे, लेकिन दूसरे चरण में इसे बढ़ाकर 6,000 रुपये कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कनार्टक और महाराष्ट्र में पशु चिकित्सा का बुरा हाल है। ऐसे राज्यों में इन सहायकों की उपयोगिता बढ़ जाएगी।
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