भारत में हर साल 50 लाख टन कार्बन उत्सर्जन इन्हीं टावरों की बदौलत, डीजल जेनरेटरों की जगह लगें सौर पैनल
भारत में सेलफोन नेटवर्क के क्रांतिकारी फैलाव का दूसरा पहलू यह भी है कि इनके कारण देश में हर साल 50 लाख टन कार्बन उत्सर्जन होता है। इस तथ्य ने यह साफ कर दिया है कि इन्हें चलाने वाले डीजल जेनरेटरों को तुरंत बदले जाने की जरूरत पर है। सौर ऊर्जा इसका विकल्प हो सकती है। इसलिए हर मोइबल टावर पर सोलर पैनल लगाए जाने चाहिए। महाराष्ट्र एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (एमईडीए) द्वारा प्रकाशित फ्यूचर एनर्जी में छपी रिपोर्ट के अनुसार सेलफोन उपभोक्ताओं की संख्या में तेजी से बढ़त आ रही है, इस कारण सेवा प्रदाता बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए ज्यादा और उच्च तीव्रता वाले अत्याधुनिक टावर लगा रहे हैं। इन टावरों के संचालन में प्रति वर्ष दो अरब लीटर डीजल की खपत होती है जिससे 50 लाख टन से भी अधिक कार्बन उत्सर्जन हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार इस समय देश में करीब दो लाख पचास हजार सेलफोन टावर हैं तथा प्रत्येक टावर तीन से पांच किलोवाट ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं। अगर सभी टावर सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करें, तो डीजल की बड़ी बचत होगी एवं कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि सेलफोन टावर लगातार चलते हैं तथा इस कारण ये डीजल की खपत भारी मात्रा में करते हैं तथा इन्हें ठंडा करने के लिए एयर कंडीशनर की भी जरूरत पड़ती है जिसे चलाने के लिए भी ऊर्जा की खपत होती है। ऐसे में अगर डीजल की बजाय सौर ऊर्जा से टावरों को चलाया जाए, तो संसाधनों की बचत के साथ ही कार्बन उत्सर्जन में भी भारी कमी आएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि सेलफोन टावर अत्यधिक ऊर्जा खींचने वाले होते हैं क्योंकि ये बिना रुके बिजली का इस्तेमाल करते हैं। सेवा प्रदाता अब ग्रामीण इलाकों में अपनी पैठ बढ़ाने की होड़ में जुट गए हैं। ऐसे में टावरों को बिजली देने के तरीके में कोई बदलाव कार्बन उत्सर्जन में कमी और संसाधनों की बचत करने में जबरदस्त साथ दे सकता है। इस तरह का अनुमान है कि आने वाले समय में सेलफोन टावरों की संख्या में खासी बढ़त होगी। माना जा रहा है कि 2015 तक मोबाइल फोन उपभोक्ताओं की संख्या एक अरब हो जाएगी। ऐसे में केंद्रीय मंत्रालय के अक्षय ऊर्जा विभाग को ठोस कदम उठाते हुए सेवा प्रदाताओं को सेलफोन टावर का संचालन सौर ऊर्जा से ही करने के लिए प्रतिबद्ध करना चाहिए।
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