Sunday, January 30, 2011

मानव-वन्यजीव जंग


उत्तराखंड में मानव और वन्य जीवों के बीच छिड़ी जंग थमने की बजाय और तेज हो रहीहै। राज्य का शायद ही कोई ऐसा कोना होगा, जहां यह जंग न छिड़ी हो। कारणों की तह में जाएं तो पता चलता है कि इस स्थिति के लिए भी मानव ही जिम्मेदार है। वन्य जीवों के वासस्थलों यानी जंगलों में मानव का हस्तक्षेप लगातार बढ़ रहा है। जहां कभी हाथियों के गलियारे थे और वे स्वच्छंद विचरण करते थे, वह जगह मनुष्य ने हथिया ली है। बाघ, गुलदार जैसे जीवों के भोजन यानी छोटे जानवरों को अवैध शिकार ने लील लिया है। इस सबके चलते वन्य जीव मनुष्य के लिए खतरा बन रहे हैं। अक्सर यह सुर्खियां बनती हैं कि अमुक जगह किसी गुलदार ने किसी के घर के चिराग को निवाला बना डाला तो किसी के घर के एकमात्र कमाऊ पूत को। वन्य जीवों का खौफ किस कदर गहरा रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य बनने से लेकर अब तक करीब साढ़े तीन सौ लोगों को जान गंवानी पड़ी है। नौ सौ से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें कईयों को अपंगता का दंश झेलना पड़ रहा है। इस जंग में सिर्फ मनुष्य ही जान से हाथ नहीं धो रहे, बल्कि वन्य जीवों को भी मौत को गले लगाना पड़ रहा है। कभी अवैध शिकार, कभी जगह-जगह लगे फंदे, करेंट व दुर्घटनाओं में वन्य जीव काल-कवलित हो रहे हैं। यही नहीं, वन्य जीव तस्करों के निशाने पर भी यहां के जंगली जानवर हैं। उत्तराखंड में अब तक करीब छह सौ गुलदारों की मौत और दो सौ के करीब हाथियों की मौत यह तस्दीक करती है। मनुष्य और वन्य जीवों के बीच यह द्वंद्व चिंताजनक ढंग से लगातार बढ़ रहा है। इसे लेकर विशेषज्ञों से लेकर वन महकमा तक, सभी चिंतित हैं और इस जंग पर रोक लगाने को कई दफा कवायद भी शुरू हुई हैं, लेकिन स्थिति में कोई सुधार अब तक नहीं आ पाया है। इसके आलोक में देखें तो वन महकमे की विफलता ही ज्यादा नजर आती है। वह अब तक लोगों को यह समझाने में नाकाम रहा है कि जैव विविधता के संरक्षण के लिए वन्य जीवों का बचा रहना जरूरी है। जंगलों में हस्तक्षेप पूरी तरह से खत्म करना होगा।


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