Sunday, January 30, 2011

तिल-तिल कर मर रही है गंगा


गंगा का पानी अब अपने प्रदूषण के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। गंगा सफाई से जुड़े प्रो. वीरभद्र मिश्र के अनुसार तो गंगा में फिकल क्वालिफार्म की संख्या वर्तमान समय में प्रति 100 सीसी पानी में 60 हजार बैक्टीरिया है और वीओडी की मात्रा चार-पांच मिलीग्राम प्रति लीटर है, जबकि यह तीन से ज्यादा नहीं होना चाहिए। वाराणसी में आदि केशव घाट पर यही फिकल क्वालिफार्म डेढ़ लाख प्रति सौ सीसी पानी में हैं, जबकि वीओडी की मात्रा 22 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में है। अगर एक लाइन में कहा जाए तो गंगा अब मरने की कगार पर पहुंच चुकी है। वह दिन दूर नहीं, जब गंगा इतिहास के पन्नों में सरस्वती नदी की तरह कहीं खो जाएंगी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गंगा प्रयोगशाला के हेड प्रो. यूसी चौधरी ने तो यहां तक कह दिया है कि गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा अब तक के निम्नतर स्तर पर है, क्योंकि टिहरी में गंगा के पानी को रोक तो दिया गया है, लेकिन गंदे नालों का पानी गंगा में लगातार गिर रहा है, जिससे ऑक्सीजन की मात्रा लगातार कम होती जा रही है। उन्होंने बेबाक लहजों में कहा की यदि अब गंगा को बचाने का ठोस प्रयास नहीं किया गया तो गंगा को कोई नहीं बचा सकता है। टिहरी से गंगा को मुक्त कर दिया जाए और शहरों के गंदे नाले गिरने बंद हो जाएं, तभी गंगा बच सकती है। वरना, इसे बचाना संभव नहीं है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा प्रदूषण रोकने के लिए एक विशाल मलशोधन संयंत्र लगाने, घाटों के नवीकरण और अन्य उपायों के संबंध में 497 करोड़ रुपये की एक महत्वाकांक्षी योजना को आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने पिछले दिनों मंजूरी दी। अब इन पैसों की गंगा सरकारी बाबुओं-हाकिमों और नेताओ के घर में बहेगी और वहां से और प्रदूषित होकर फिर भागीरथी में मिल जाएगी। भारत की जीवन रेखा कही जाने वाली गंगा तिल-तिल कर मर रही है, लेकिन उसके तथाकथित पुत्र उसे चुप-चाप मरते हुए देख रहे हैं और गंगा कि दुर्दशा ऐसी तब है, जब गंगा एक्शन प्लान का दूसरा चरण चल रहा है। कहना न होगा कि गंगा सफाई के नाम पर करोड़ों रुपये अब तक बहाए जा चुके हैं, लेकिन वही हालत है कि ज्यों-ज्यों दावा की, त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता गया। गंगा सफाई के सरकारी प्रयास के अलावा कम से कम तीन दर्जन एनजीओ वाराणसी में ऐसे हैं, जो दसों साल से गंगा प्रदूषण का राग अलाप रहे हैं, लेकिन गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए प्रयास नहीं किए। हरी धरती ब्लॉग में पवन कुमार मिश्र


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