गोमुख से बंगाल की खाड़ी के बीच राष्ट्रीय नदी गंगा आने वाले दिनों में नौ स्थानों पर दम तोड़ देगी। हरिद्वार से आगे 2100 मीटर लंबे पेटे में बालू का जमाव नदी को खाने लगा है। काशी हिंदू विश्व विद्यालय की गंगा प्रयोगशाला के चौंकाने वाले अध्ययन से यह भी पता चला है कि मोक्षनगरी काशी में पाप मोचनी महज तीन दशक के भीतर विलुप्त हो जाएगी। जल प्रदूषकों से निबटने की योजना के तहत जिस एरिया को कछुआ सेंचुरी घोषित किया गया था, वही अब भोले की नगरी में गंगा के लिए काल बन गया है। जल शुद्धीकरण के निमित्त वन्य जीव प्रभाग ने कछुओं के प्रजनन और पालन पर मोटा बजट तो खर्च किया लेकिन न वो रेती में घोसले बना सके और न धारा में जन्मे कीड़ों का सफाया ही हो सका। इससे जहां गंगा की प्राकृतिक व्यवस्था टूटी, वहीं बालू खनन प्रतिबंधित होने से करोड़ों के राजस्व से सरकार को वंचित होना पड़ा अलग से।
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने तीन साल पहले जिन संकल्पों के साथ 2525 किमी लंबी गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा देकर देशवासियों का दिल जीता था, उसे अब कटाव और जमाव की बीमारी खा रही है। अनियमित और असंतुलित जल दोहन से हरिद्वार के बाद अप और टाउन स्ट्रीम में नदी बालू के जमाव से वक्राकार स्वरूप में तब्दील हो रही है। गंगा प्रयोगशाला के अध्ययन के मुताबिक हरिद्वार से नरोरा के बीच डेढ़ सौ किमी एरिया में गंगा जबरदस्त दुर्दशा का शिकार हो गई है। नरोरा से नीचे कानपुर तक नदी के वेग शून्य या बेदम होने की आशंका है। इलाहाबाद, पटना, भागलपुर, सुल्तानगंज के अजगैवीनाथ महादेव में गंगा आने वाले दिनों में अस्तित्व खो देगी। अध्ययन के मुताबिक काशी में गंगा की उम्र सिर्फ तीस साल ही रह गई है। यहां केंद्रीय वन्य जीव अधिनियम की धारा 1972 के तहत राजघाट मालवीय पुल से रामनगर किले तक सात किमी एरिया को वर्ष 2000 में कछुआ सेंचुरी के रूप में प्रतिबंधित किए जाने से भयावह परिणाम सामने आए हैं। दशक भर में जल, जीवन और धन तीनों पर गहरा असर पड़ गया। सेंचुरी एरिया में नदी की जल भंडारण और वेग की क्षमता नष्ट होने, मछुआ व्यवसाय ठप होने से जहां बड़ी तादाद में लोग बिलबिला उठे, वहीं बाढ़ के दिनों में पहाड़ों के कटान से आने वाली बालू -मिट्टी से प्रति वर्ष 10 से 15 मीटर चौड़ाई और 15-से 20 सेंटी मीटर गहराई पटने लगी है। चालू वर्ष कहीं 18 तो कहीं 20 मीटर चौड़ाई कम होने के प्रमाण मिले हैं।
गंगा प्रयोगशाला के निदेशक प्रोफेसर यूके चौधरी के मुताबिक अनियमित जल दोहन और नदी संरचना को जाने बिना सेंचुरी के प्रतिबंध गंगा के लिए घातक साबित होंगे।
उल्लेखनीय है कि 1986 में वाराणसी के राजेंद्र प्रसाद घाट से तत्कालीन प्रधान मंत्री ने जब गंगा कार्ययोजना का श्रीगणेश किया था तब उसी क्रम में 1989 में राजघाट मालवीय पुल से लेकर रामनगर तक सात किमी गंगा की तटीय एरिया कछुआ सेंचुरी घोषित कर दी गई। फिर बालू खनन और मछली के शिकार के लिए किनारा प्रतिबंधित कर दिया गया था।
-प्रोफेसर यूके चौधरी,प्रसिद्ध नदी वैज्ञानिक, काशी हिंदू विश्व विद्यालय…..
गंगा को बचाने के लिए एकमात्र उपाय है कि शीघ्र सिंचाई और पेयजल के निमित्त जल दोहन को बनाए गए केंद्रों का विभाजन कर दिया जाए। हरिद्वार से 10600 क्यूबिक फुट प्रति सेकेंड जल निकासी से पूरे बेसिन में गंगा की बालू ढोने की क्षमता खत्म हो गई है। अलग-अलग जगह से समान अनुपात में पानी निकाला जाए और ड्रिलिंग कराई जाए तो स्थिति काबू में आ सकती है।
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