Monday, February 7, 2011

जैव विविधता को खतरा


पैंसठ फीसदी वन भूभाग वाले उत्तराखंड के जंगलों पर खतरा कम होने का नाम नहीं ले रहा। कभी अवैध कटान तो कभी विकास के नाम पर बड़े पैमाने पर हर साल ही जंगल तबाह हो रहे हैं। उस पर फायर सीजन भी कम सताने वाला नहीं है। इस सबके बीच अब अनुपयोगी वनस्पतियों ने भी जंगलों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। लैंटाना, कालाबांस व गाजरघास जैसी पारिस्थितिकीय तंत्र के लिए बेहद खतरनाक वनस्पतियों ने सूबे के लगभग सभी जंगलों को अपनी गिरफ्त में लिया हुआ है। क्या संरक्षित वन क्षेत्र, क्या सिविल व क्या पंचायती वन अथवा वन्य जंतु परिरक्षण क्षेत्र, सभी में इन वनस्पतियों ने चिंताजनक ढंग से पैर पसारे हुए हैं। यह ऐसी वनस्पतियां हैं, जो अपने इर्द-गिर्द कुछ भी नहीं पनपने देती। खासकर लैंटाना तो सर्वाधिक हमलावर है। वन क्षेत्रों में लैंटाना के निस्तारण के लिए वन विभाग अब तक नाकाम ही साबित हुआ है। इस परिदृश्य के बीच अब राज्य के जंगलों में वनस्पतियों के रूप में नई आफत आन पड़ी है। बला, वासिंगा व वासुकी ने वनों में बड़े पैमाने पर पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। राजाजी नेशनल पार्क व कार्बेट नेशनल पार्काें में इन तीनों वनस्पतियों के पैचेज दिखाई पड़ने से महकमे की पेशानी में बल पड़ना लाजिमी है। चिंता की वजह यह कि यह तीनों वनस्पतियां भी लैंटाना जैसे स्वभाव की हैं। यानी ये भी अपने आसपास दूसरी वनस्पतियों को नहीं पनपने देतीं। साफ है कि जैव विविधता के लिए मशहूर देवभूमि के जंगल हमलावर वनस्पतियों के निशाने पर आ गए हैं। भले ही जंगल और पर्यावरण के लिए खतरनाक पौधों की आवक बढ़ रही हो, लेकिन इनके पैर पसारने के पीछे कहीं न कहीं विभागीय अनदेखी ही जिम्मेदार है। प्रश्न यह है कि जब किसी भी क्षेत्र में लैंटाना अथवा दूसरी वनस्पतियां कहीं भी नजर आएं, तभी उनके निस्तारण को कदम क्यों नहीं उठाए जाते। यदि ऐसा हो जाए तो फिर ऐसी कोई दिक्कत ही नहीं आएगी। यही अनदेखी जंगलों पर भारी पड़ती नजर आ रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार और वन महकमा इस ओर गंभीरता से ध्यान देंगे।


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