Sunday, February 20, 2011

हिमाचल-गुजरात से सीख लेकर भू-जल स्तर सुधारेगा उत्तराखंड


गंगा-यमुना समेत कई नदियों को सहेजने वाले उत्तराखंड की पेयजल की बढ़ती जरूरतें भू-जल को सतह के नीचे और गहरे जाने को मजबूर कर रही हैं। वहीं, भू-जल स्तर ऊपर उठाने और उसे रिचार्ज करने के उपाय लागू करने में ही राज्य का पसीना छूट रहा है। इस समस्या से निपटने को अब हिमाचल और गुजरात पैटर्न का अध्ययन किया जाएगा। भविष्य में बढ़ती जरूरत पूरी करने को भू-जल पर उत्तराखंड की निर्भरता और बढ़नी तय है। ऐसे में भू-जल संरक्षण और उसे रिचार्ज करने को रेन वाटर हार्वेस्टिंग को किए जा रहे उपाय अपेक्षा पर खरा नहीं उतर रहे। राज्य की तकरीबन 85 लाख की आबादी में रोजाना हर शहरी को तकरीबन 165 लीटर और हर ग्रामीण को 70 लीटर पानी की दरकार है। प्रदेश के लोगों को प्रतिदिन 1250 एमएलडी पानी चाहिए। राज्य के 65 प्रतिशत से ज्यादा विषम भौगोलिक क्षेत्रफल में पहाड़ों और कठोर चट्टानों पर पानी रुकने का नाम नहीं लेता। ऐसे में पहाड़ों में भूगर्भ जल को रिचार्ज करने को चाल-खालों, गदेरों, कंदराओं के साथ ही घाटियों को माइक्रो कैचमेंट एरिया के तौर पर ट्रीट करने की जरूरत महसूस की जा रही है। चट्टानों का वर्गीकरण सही ढंग से करने पर विशेषज्ञों का जोर है। तराई क्षेत्रों एवं बड़ी नहरों के किनारे इस योजना पर अमल नहीं किया जाए। इन क्षेत्रों में भूजल स्तर अन्य स्थानों की अपेक्षा काफी ऊपर है। ऐसे में इन क्षेत्रों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का भू-जल स्तर पर विपरीत प्रभाव पड़ने का अंदेशा है। वर्षा जल संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) को आबादी वाले इलाकों में प्रोत्साहित करने पर जोर है ताकि भूमिगत जलाशय में इस पानी को इकट्ठा किया जा सके। इसके बाद उसका उपयोग दैनिक और घरेलू कार्यो में हो सके। शेष पानी भूगर्भ जल को रिचार्ज करने में इस्तेमाल किया जा सकेगा। उत्तराखंड जैसी भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य हिमाचल और सुदूर गुजरात ने भू-जल रिचार्ज करने की दिशा में कारगर तरीके से कार्य किया है। राज्य योजना आयोग के नेतृत्व में पीडब्ल्यूडी, पेयजल निगम की टीम उक्त राज्यों का दौरा करेंगी। उनकी रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार भू-जल रिचार्ज और रेन वाटर हार्वेस्टिंग की कारगर योजना पर आगे कदम बढ़ाने पर विचार करेगी।


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