उत्तराखंड के लिए नेशनल पार्क और वन्यजीव अभ्यारण्य (वाइल्ड लाइफ सेंचुरीज) सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो रहे हैं। राज्य गठन के बाद गुजरे एक दशक में नेशनल पार्क व सेंचुरीज में आने वाले पर्यटकों की संख्या में चार गुना और राजस्व छह गुना बढ़ा है। यह बात दीगर है कि प्रोजेक्ट टाइगर और एलीफेंट संचालित करने वाले राज्य को बाघों व हाथियों की संख्या में लगातार कमी के रूप में इसकी खासी कीमत भी चुकानी पड़ रही है। उत्तराखंड की दुनिया में एक बड़ी पहचान यहां के नेशनल पार्क और वाइल्ड लाइफ सेंचुरीज के कारण भी है। कार्बेट नेशनल पार्क, राजाजी नेशनल पार्क, वैली आफ फ्लावर नेशनल पार्क आज किसी पहचान के मोहताज नहीं। अलग राज्य के रूप में वजूद में आने के बाद से ये पार्क और सेंचुरीज उत्तराखंड के लिए पर्यटकों की आमद के लिहाज से राजस्व जुटाने में भी खासे महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि राज्य के कुल पांच नेशनल पार्क व चार वाइल्ड लाइफ सेंचुरीज में से इस मामले में अकेले कार्बेट नेशनल पार्क अन्य पर भारी रहा। इस दशक की शुरुआत, यानि वर्ष 2000-01 में राज्य के इन सभी पार्क व सेंचुरीज में कुल 67,776 पर्यटकों ने आमद दर्ज कराई, जिनमें 63,440 भारतीय व 4,336 विदेशी पर्यटक शामिल थे। इनसे राज्य सरकार को कुल आय हुई 85.05 लाख रुपये। अब आंकड़ा देखें वर्ष 2009-10 का तो कुल पर्यटकों की संख्या जा पहुंची चार गुना से ज्यादा, 3,01,241, जिनमें भारतीय पर्यटक रहे 2,85,412 और विदेशी 15,829। इन सबसे राज्य सरकार को हासिल हुआ कुल 5.47 करोड़ रुपये का राजस्व, यानि दस वषरें में छह गुना से भी ज्यादा बढ़ोतरी। अकेले कार्बेट पार्क में वर्ष 2009-10 में पहुंचे 1,98,205 पर्यटक। इनमें शामिल 1,89,988 भारतीय व 8,217 विदेशी पर्यटकों से आय हुई कुल 4.45 करोड़ रुपये। सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि पिछले एक दशक में राज्य में बाघ (टाइगर) और हाथियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज हुई है। वन विभाग के आंकड़ों के ही मुताबिक वर्ष 2003 की गणना में राज्य में बाघों की कुल संख्या 245 दर्ज हुई जो अगली गणना वर्ष 2005 में घटकर 241 व नवीनतम गणना वर्ष 2008 में 178 तक सिमट गई। इसी तरह उक्त तीन गणनाओं में राज्य में हाथियों की संख्या क्रमश: 1582, 1510 और 1346 ही पाई गई।
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