बाघों की गणना के बहुप्रतीक्षित नतीजों को इस वर्ष मार्च के अंत में जारी किया जाएगा। सुत्रों के मुताबिक इस बार बाघों की संख्या बढ़ने के संकेत है। इस विषय पर पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश ने एक समारोह के इतर कहा, ‘नतीजों की घोषणा 26 मार्च को की जाएगी। देश के 19 राज्यों के अभयारण्यों में बाघों के कई शावक देखे गए हैं। लिहाजा, यह उम्मीद लगाई जा रही है कि इस बार बाघों की गणना में वृद्धि होगी।’
इससे पहले रमेश ने पूर्व में कहा था कि वह बाघों की गणना के नतीजों को लेकर उत्साहित हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान बाघों की गणना कर रहा है। इसके लिए वन क्षेत्रों में जलाशयों जैसे अहम स्थानों पर कैमरे स्थापित किए गए हैं। बाघों की मौजूदगी का निर्धारण करने के लिए कम्प्यूटर के जरिए विश्लेषण किया जा रहा है। बाघों की गणना के शुरुआती रूझान में संकेत मिले हैं कि इस वन्यजीव प्रजाति की संख्या में इजाफा हुआ है, लेकिन इससे मानव और वन्यजीवों के बीच टकराव की घटनाएं बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है। वर्ष 2006-07 में हुई पिछली गणना के अनुसार भारत में बाघों की संख्या सिर्फ 1,411 रह गई थी। रमेश ने कहा कि वर्तमान में देश का वन क्षेत्र हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों को नौ फीसदी तक सोख लेता है। अगर हम नहीं जागे और वन क्षेत्रों की गुणवत्ता नहीं बढ़ाई गई तो वर्ष 2020 तक वनों की ग्रीन हाउस गैसों को सोखने की क्षमता चार फीसदी ही रह जाएगी। उन्होंने कहा कि सकल घरेलू उत्पाद में अगर वृद्धि होती रही तो ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी वर्ष 2020 तक काफी बढ़ जाएगा लेकिन हरित भारत मिशन से हम वनों की इन गैसों को सोख लेने की क्षमता को 6.5 फीसदी पर बनाए रखने में कामयाब रहेंगे। रमेश ने कहा कि इस महत्वाकांक्षी मिशन का सबसे अहम बिंदु जनभागीदारी है। इस मिशन का कार्यान्वयन वन क्षेत्रों में रहने वाले स्थानीय लोग, पर्यावरण संगठन और स्वयं सहायता समूह करेंगे। इसमें वन विभाग सिर्फ तकनीकी सहायता मुहैया कराएगा और कार्यान्वयन पर नजर रखेगा। उन्होंने कहा, ‘वन क्षेत्रों से स्थानीय समुदाय को विस्थापित करने के गंभीर परिणाम हमने झारखंड, उड़ीसा, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में देखे हैं। अब हम वन क्षेत्रों से स्थानीय समुदाय को नहीं विस्थापित करना चाहते। वे इस मिशन का सबसे अहम हिस्सा रहेंगे।
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