Sunday, February 20, 2011

बंजर हो गई नयार घाटी की आधी जमीन


दूधातोली पर्वतों की गोद से बहने वाली पश्चिमी नयार नदी के तट पर बसे 44 गांव अब धीरे-धीरे वीरान हो रहे हैं। नयार के तट पर स्थित 16 हजार हेक्टेयर से ज्यादा कृषि योग्य भूमि में से तकरीबन आधी बंजर हो चली है। इसे आबाद करने की कोशिशों में जलागम प्रबंध, हरियाली विकास व उद्यान विभाग ने वर्ष 2008-09 में 2 करोड़ 98 लाख की धनराशि भी व्यय की, लेकिन इसके बाद भी बंजर भूमि का विकास नहीं हो पाया है। ऐसा ही चलता रहा तो बहुत जल्दी इन गांवों में सिर्फ खंडहर ही नजर आएंगे। दूधातोली पर्वतों से बह रही नयार नदी के किनारे बसे गांवों की खेती कभी मन को लुभाती थी, तब यहां से अनाज पौड़ी की बाजारों तक भी पहुंचता था। वक्त के साथ-साथ इन गांवों से पलायन तेज हुआ और अब ये धीरे-धीरे वीरान हो रहे हैं। इस क्षेत्र की कृषि योग्य जमीन तेजी से बंजर हो रही है। आंकड़े गवाह हैं कि 16 हजार 4 सौ 12 हेक्टेयर कुल जमीन में से 7 हजार 1 सौ 25 हेक्टेयर जमीन यहां बंजर हो चुकी है। इसके अलावा 1 हजार 3 सौ 12 हेक्टेयर जमीन अब खेती योग्य नहीं रह गई है। मुख्य कृषि अधिकारी सुरेश यादव कहते हैं कि कृषि भूमि को आबाद करने का प्रयास तो किया गया, लेकिन पलायन के चलते भूमि आबाद नहीं हो पाई। अब बंजर भूमि विकास को लेकर अटल आदर्श ग्राम योजना शुरू की गई और एक बार विभाग फिर प्रयास कर रहा है कि बंजर भूमि का विकास किया जाए। वहीं, नयार घाटी के 44 गांवों में पलायन में तेजी आई है। इस क्षेत्र के करीब 55 फीसदी युवा सेना व अ‌र्द्घसैनिक बलों में हैं। पहले उनके बच्चे गांव के स्कूलों में पढ़ते थे। अब वे देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, कोटद्वार व पौड़ी जैसे शहरों में शिफ्ट कर चुके हैं। गढ़वाल मंडल की सांख्यिकी के आंकड़ों पर नजर दौड़ाए तो पूरे जिले में 316 गांव ऐसे हैं, जिनका शत प्रतिशत पलायन हो चुका है और इसमें 12 गांव नयार घाटी के हैं। ये वे गांव है जिनमें शत प्रतिशत पलायन हुआ है, लेकिन शेष गांवों में 30 से 60 प्रतिशत तक पलायन है और गांवों में वे ही लोग है जिन्हें गांव से बाहर जाने का मौका नहीं मिला। ब्लॉक थलीसैंण व पाबौं के 27 विद्यालय ऐसे हैं जिनमें छात्र संख्या 6 व उससे कम है और इन विद्यालयों को बंद करने के आदेश दिए गए हैं। इस बारे में बात करने पर अपर जिला शिक्षा अधिकारी एसपी सेमवाल बताते हैं कि ब्लॉक थलीसैंण व पाबौं की इन स्कूलों को इसलिए बंद करना पड़ रहा है कि यहां छात्र संख्या घट रही है और इसकी एक बड़ी वजह पलायन है। पौड़ी से 30 किमी के दूरग्राम मिलई, चौड़ला, कुई, बरसुड़ी, ढौर, सकनेणा, घंडियाल, बूंगा, जवड़ी, पपड़तोली, कलगड्डी समेत अन्य गांवों की आबादी तेजी से घट रही है। अब ये गांव धीरे-धीरे उजाड़ होते जा रहे हैं। पौड़ी के डीएम ने कहा कि कृषि योग्य जमीन खत्म हो रही है और गांवों में पलायन तेजी से बढ़ रहा है यह चिंतनीय है, लेकिन इसे रोकना प्रशासन के दायरे से बाहर है।


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