दिलकश नजारों, खूबसूरत वादियों और बर्फ से लदे पहाड़ों के लिए विख्यात कुल्लू-मनाली की सुरम्य घाटियां मैली हो गई हैं। पर्यटकों की संख्या में इजाफे से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। वाहनों का बढ़ता दबाव और उनसे निकलने वाला धुंआ पर्यटन नगरी की आबोहवा को जहरीला बना रहा है। लेह के मुकाबले यहां प्रदूषण की मात्रा पांच गुना से भी अधिक आंकी गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि वायुमंडल में यहां एरोसोल ऑप्टिकल डैप्थ, अल्फा और बीटा की मात्रा भी अधिक पाई गई है। गर्मियों में वायु सबसे अधिक प्रदूषित हो रही है। इसी तरह का क्त्रम चलता रहा तो आने वाले समय में हम कानपुर से भी आगे निकल जाएंगे। पोलैंड की अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका एक्टा जियोफिजिक्स द्वारा करीब डेढ़ साल तक अत्याधुनिक उपकरण (वेबलेंथ रेडियो मीटर) की मदद से किए गए शोध के बाद यह खुलासा किया है। विदेशी वैज्ञानिकों ने राज्य के विशेषज्ञों के साथ मिलकर मनाली की आबोहवा पर शोध किया। उन्होंने भौतिकी के नियमों का अनुसरण कर एक साल तक सूर्य की विभिन्न तरंगों का वातावरण द्वारा अवशोषण पर विस्तृत अध्ययन किया। शोध से यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि यहां का वातावरण इसके समकक्ष अन्य पर्यटक स्थलों से ज्यादा प्रदूषित है। लेह, नैनीताल की अपेक्षा यहां कई गुना ज्यादा ऑप्टिकल डेप्थ की मात्रा पाई गई। सूक्ष्मकणों की उपस्थिति पतझड़ में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव को लेकर सर्वाधिक पाई गई है। लेह में 0.05 व नैनीताल में हवा में प्रदूषण की मात्रा 0.07 के आसपास है, जबकि कुल्लू मनाली में इसकी मात्रा 0.24 है। जबकि अल्फा फाइन पार्ट्स (सूक्ष्म कण) 1.06 व बीटा (मोटे कण) .14 तक पहुंचे हैं। शोध के नतीजे से नासा के मौडिस सेटेलाइट द्वारा कुल्लू-मनाली क्षेत्र के वातावरण का अंतरिक्ष से किया गया सर्वेक्षण भी मेल खाता है। शोध कार्य में प्रमुख भूमिका निभाने वाले नंद लाल शर्मा का वाहनों से निकलने वाले सूक्ष्म कणों पर शोध प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्रिका रेडियो एवं स्पेस फिजिक्स में दिसंबर 2009 में छप चुका है। शर्मा का कहना है कि मोटे कण खनन, सड़क निर्माण, क्त्रशर आदि से निकलते हैं जबकि सूक्ष्म कण (अल्फा) वाहनों के धूएं से निकल रहे हैं। बकौल नंद लाल टूरिस्ट डेस्टिनेशन को कंवर्ट करने से आबोहवा माकूल हो सकती है, लेकिन इसके लिए कई तथ्यों पर गिद्ध दृष्टि रखने की दरकार है। नहीं तो मनाली प्रदूषण के मामले में काफी आगे निकल सकती है।
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