Tuesday, February 22, 2011

एक नहीं कई भागीरथों का प्रयास लाएगा रंग


क्षेत्रीय प्रदूषण नियंतण्र बोर्ड की मानें तो गंगा के जल में सुधार आना शुरू हो गया है। इलाहाबाद में गंगा के जल में कलर का मान 40 हैजेन से घटकर 30 हैजेन रह गया है। हालांकि गंगा निर्मलीकरण की दिशा में यह बहुत छोटी उपलब्धि है लेकिन छोटे-छोटे प्रयासों से ही बेहतर और सुखदायक नतीजे पर पहुंचा जा सकता है। केंद्र सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने की दिशा में किया जाने वाला प्रयास अब जोर पकड़ने लगा है। कुछ समय पहले केंद्र की पहल पर आईआईटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने गंगा सफाई की कार्ययोजना बनाकर नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी को सौंपी है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। क्लीन गंगा योजना जिसकी समय सीमा 2020 निर्धारित है, यदि अपने उद्देश्य में सफल रही तो वह दिन दूर नहीं जब गंगा फिर से अपनी निर्मलता और पवित्रता से आस्थावानों को सराबोर करती दिखेगी। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा प्रस्तुत करते हुए केंद्र सरकार द्वारा कहा भी गया है कि गंगा मिशन के तहत सुनिश्चित किया जाएगा कि 2020 के बाद गैर शोधित सीवर और औद्योगिक कचरा गंगा में न बहाया जाए। गंगा की दुगर्ति की मूल वजह सीवर और औद्योगिक कचरा ही है जो बिना शोधित किए उसमें बहा दिया जाता रहा है। र्वल्ड बैंक की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि प्रदूषण की वजह से गंगा नदी में ऑक्सीजन की मात्रा लगातार कम होती जा रही है, जो मानव जीवन के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। सीवर का गंदा पानी और औद्योगिक कचरा बहाने के कारण ही क्रोमियम और मरकरी जैसे घातक रसायनों की मात्रा गंगा में बढ़ती गई है। भयंकर प्रदूषण के कारण गंगा में जैविक ऑक्सीजन का स्तर पांच हो गया है जबकि नहाने लायक पानी में कम से कम यह 3 से अधिक नहीं होना चाहिए। गोमुख से गंगोत्री तक गंगा के तकरीबन 2500 किमी के रास्ते में कालीफार्म बैक्टीरिया की उपस्थिति दर्ज की गयी है जो अनेक बीमारियों की जड़ बन रहा है।औद्योगिक विश-विज्ञान केंद्र लखनऊ के वैज्ञानिकों द्वारा भी अपनी रिपोर्ट में बताया गया है कि गंगा के पानी में मिले ई-काईल बैक्टीरिया में जहरीला जीन है। वैज्ञानिकों ने माना कि बैक्टीरिया पाए जाने की मुख्य वजह गंगा में मानव और जानवरों मैला बहाना है। ई-काईल बैक्टीरिया की वजह से लाखों लोग गंभीर बीमरियों की चपेट में आकर मर रहे हैं। गंगा के प्रदूषण खत्म करने के लिए आम लोगों को सरकार के साथ दो कदम आगे आना होगा। जब तक लोग यह नहीं समझेंगे कि गंगा के प्रदूषण और गंदगी से आम जनजीवन को क्षति पहुंच रही है, तब तक गंगा को स्वच्छ नहीं किया जा सकता। सरकार द्वारा गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कई बार योजनाएं बनायी जा चुकी हैं लेकिन वे कागजी पुलिंदे से अधिक साबित नहीं हुई हैं। 1989 में सरकार द्वारा गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट योजना बनायी गई लेकिन जनसहभागिता के अभाव में यह दम तोड़ गयी। अदालतों द्वारा भी सरकार को बार-बार हिदायत देते हुए पूछा गया कि आखिर क्या वजह है कि ढाई दशक गुजर जाने के बाद और बहुत सी कमेटियां और प्राधिकरण के गठन के बावजूद गंगा प्रदूषण की समस्या का प्रभावी हल नहीं ढूंढ़ा जा सका है। पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर सरकार द्वारा गंगा के किनारे दो किलामीटर के दायरे में पॉलिथिन एवं प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया गया लेकिन सवाल उठता है कि क्या ऐसे कानूनी प्रतिबंधों के दम पर गंगा को प्रदूषण से मुक्त किया जा सकता है? देखा जाए तो गंगा लोगों की आस्था से जुड़ी है और इसी के नाम पर उसके साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। गंगा के घाटों पर प्रत्येक वर्ष बेहिसाब लाशें जलायी जाती हैं या उन्हें जल में प्रवाहित किया जाता है। दूर स्थानों से जलाकर लायी गयी अस्थियां भी इसमें प्रवाहित होती हैं। हद तो तब पार हो जाती है जब गंगा सफाई अभियान से जुड़ी एजेंसियों द्वारा गंगा से निकाली गयी अधजली हड्डियां और राख पुन: उसी में उड़ेल दी जाती हैं। आखिर इस प्रकार के सफाई अभियान से कौन सा मकसद पूरा होता है? जब तक आस्था और स्वार्थ के उफनते ज्वार भाटे पर नैतिक रूप से और स्वविवेक से विराम नहीं लगेगा तब तक सरकार चाहे जितना प्रयास क्यों न करे, गंगा को प्रदूषण से बचाया नहीं जा सकता है। आज जरूरत इस बात की है कि सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं अपने अडिग संकल्प, सार्थक मंशा और निष्पक्ष नीयत के साथ जनमानस को यह बताने की कोशिश करें कि गंगा की निर्मलता और पवित्रता मानव जीवन के लिए किस हद तक आवश्यक है। जब तक गंगा सफाई अभियान को जन अांदोलन का रूप नहीं दिया जाएगा तब तक सफलता मिलना असंभव है। प्रयास यह भी होना ना चाहिए कि देश के समाजसेवी, बुद्धिजीवी और साधु-संत एक मंच पर आकर की स्वच्छता के संदर्भ में जनमत तैयार करें। यह समस्या सिर्फ कानूनी दांवपेंचों से हल नहीं हो सकती है। भारतीय जन की आस्था और धर्म से जुड़ी गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए एक नहीं, हजारों भगीरथों की जरूरत है।


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