हाल ही में प्रदूषित पानी को गंगा में बहाने से रोकने के क्रम मे उत्तर प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कानपुर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पांच टेनरियां बंद करने का आदेश दिया। इसके अलावा बोर्ड ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण से प्रदूषण फैलाने वाली नौ और टेनरियों को बंद करने की इजाजत मांगी है। उत्तर प्रदेश के राज्य प्रदूषण बोर्ड का कहना है कि कई नोटिस देने के बावजूद ये टेनरियां अपने यहां प्राइमरी ट्रीटमेंट प्लांट न लगाकर गंदा पानी सीधे गंगा में बहा रही हैं। उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि अगर टेनरी मालिक आगे भी गंगा में प्रदूषण फैलाते रहे तो बंद होने वाली टेनरियों की संख्या में और इजाफा हो सकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। गौरतलब है कि गंगा के किनारे लगभग 25 शहर, 65 कस्बे और हजारों गांव हैं। प्रतिदिन इस आबादी का लगभग 1.3 अरब लीटर अपशिष्ट गंगा में गिरता है। गंगा के आस-पास स्थित कारखाने भी गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं। प्रतिदिन लगभग 26 करोड़ लीटर औद्योगिक अपशिष्ट गंगा में जहर घोल रहा है। पिछले दिनों जब वाराणसी में गंगा जल के नमूनों की जांच की गई तो प्रति 100 मिलीलीटर जल में हानिकारक जीवाणुओं की संख्या 50,000 पाई गई जो नहाने के पानी के लिए सरकार द्वारा जारी मानकों से 10,000 फीसदी ज्यादा है। अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 80 फीसदी स्वास्थ्यगत समस्याएं और एक-तिहाई मौतें जल-जनित बीमारियों के कारण ही होती हैं। ऋषिकेश से इलाहाबाद तक गंगा के आस-पास लगभग 146 औद्योगिक इकाइयां स्थित हैं। इनमें चीनी मिल, पेपर फैक्ट्री, फर्टिलाइजर फैक्ट्री, तेलशोधक कारखाने, फार्मा कंपनियां तथा चमड़ा उद्योग प्रमुख हैं। इन सभी औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला कचरा और रसायनयुक्त गंदा पानी गंगा में गिरकर गंगा के पारिस्थितिक तंत्र को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। इन फैक्टि्रयों से निकलने वाले अपशिष्ट में मुख्य रूप से हाइड्रोक्लोरिक एसिड, मरकरी, भारी धातुएं, कीटनाशक तथा पॉलीक्लोरिनेटिड बाईफिनाइल जैसे खतरनाक रसायन होते हैं। इन रसायनों से जानवरों एवं मनुष्यों को बहुत सी गंभीर बीमारियां हो जाती हैं। चमड़ा उद्योग से निकलने वाले अपशिष्ट में विभिन्न कार्बनिक पदार्थ, क्रोमियम, सल्फाइड अमोनियम आदि अनेक हानिकारक तत्व होते हैं। पानी के साथ बहकर आने वाले रासायनिक उर्वरक एवं डीडीटी जैसे कीटनाशक भी गंगा को जहरीला बना रहे हैं। गौरतलब है कि जहरीला होने और कैंसर पैदा करने वाले प्रभावों को देखते हुए अमेरिका में डीडीटी का इस्तेमाल प्रतिबंधित है। गंगा किनारे होने वाले दाह-संस्कार, श्रद्धालुओं द्वारा विसर्जित फूल, पॉलीथीन और अन्य सामग्री तथा जले-अधजले शव भी गंगा को बीमार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि गंगा को स्वच्छ बनाने की योजना के अंतर्गत वर्ष 1985 से 2000 के बीच गंगा एक्शन प्लान एक और दो के क्रियान्वयन में लगभग 1000 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन गंगा अभी भी प्रदूषण की मार झेल रही है। गंगा को स्वच्छ रखने के लिए 3 मई, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड सरकार को गंगा में पर्याप्त पानी छोड़ने और गंगा के आस-पास पॉलीथीन को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया था, लेकिन अब भी इन क्षेत्रों में पॉलीथीन पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं की जा सकी है। गंगा एक्शन प्लान में पर्याप्त सफलता न मिलने के बाद अब देश के सात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने गंगा को स्वच्छ बनाने का बीड़ा उठाया है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड के अनुसार गंगा विश्व की उन दस नदियों में से एक है जिनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। हमें यह समझना होगा कि केवल सरकारी योजनाओं के भरोसे ही गंगा को स्वच्छ नहीं बनाया जा सकता। गंगा को प्रदूषण-मुक्त बनाने के लिए एक जन-जागरण अभियान की जरूरत है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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