Thursday, February 3, 2011

बाघों के लिए नए ठिकाने की तलाश पूरी


बाघों की कम होती तादाद से चिंतित केंद्र सरकार ने राजस्थान में एक नया बाघ परियोजना क्षेत्र विकसित करने का निर्णय किया है। प्रदेश में प्रस्तावित एक और बाघ परियोजना क्षेत्र मुकुंदरा हिल्स में करीब 700 वर्ग किलोमीटर का एरिया शामिल होगा। इसके विकास से रणथंभौर के बाघों को विचरण के लिए नया क्षेत्र मिलने के साथ ही बाघों के बीच संघर्ष की स्थिति रोकने में मदद मिलेगी। प्रदेश का यह तीसरा बाघ परियोजना क्षेत्र होगा। राज्य में सबसे पहले रणथंभौर को 1973-74 में और सरिस्का को 1978-79 में बाघ परियोजना क्षेत्र का दर्जा मिला था। सरिस्का में इस समय चार बाघ हैं और वे यहां रणथंभौर से पुनर्वासित किए गए हैं। केंद्र सरकार ने हाल ही में मुकुंदरा हिल्स और उसके आसपास के क्षेत्र को बाघ परियोजना क्षेत्र का दर्जा देने पर सैद्धान्तिक सहमति दी है। वन विभाग ने इसका प्रस्ताव कुछ समय पहले राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के जरिए केंद्र को भेजा था। सूत्रों के मुताबिक रणथंभौर में बाघों की संख्या बढ़ने से हो रहे संघर्ष के आधार पर एनटीसीए ने राजस्थान में एक और बाघ परियोजना क्षेत्र विकसित करने की सिफारिश की थी। वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित मुकुंदरा हिल्स बाघ परियोजना क्षेत्र में वन्यजीव अयारण्य दर्रा का 250 वर्ग किमी, चंबल नेशनल पार्क का 280 वर्ग किमी और जवाहर सागर का 153 वर्ग किमी एरिया शामिल होगा। इन्हें शामिल करते हुए यह बाघ परियोजना क्षेत्र विकसित होगा। रणथंभौर बाघ परियोजना क्षेत्र से बाघ आमतौर पर भटककर इसी रास्ते से उत्तर प्रदेश या मध्य प्रदेश की तरफ निकलते हैं। रणथंभौर में इस समय 38-40 बाघ-बाघिन हैं। इनमें बाघों की संख्या ज्यादा है। ये अपनी टेरेटरी बनाने के लिए कोर एवं बफर एरिया से आए दिन बाहर निकल रहे हैं। आमतौर पर ये बाघ कोटा, दर्रा और चंबल की तरफ निकलते हैं। अब यह नया क्षेत्र बाघ परियोजना के रूप में घोषित होने से इनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। अभी इस क्षेत्र में सुरक्षा का खास इंतजाम नहीं है। इस क्षेत्र में आए बाघ को वापस रणथंभौर खदेड़ना पड़ता है।


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