वन्यजीवों के भय से त्रस्त उत्तराखंड में न जाने कब कहां से मौत की आहट सामने आ धमके। न घर आंगन सुरक्षित, न खेत खलिहान। गुलदारों की लगातार सक्रियता ने मुसीबतें और बढ़ा दी हैं। अब तो स्थिति यह हो चली है कि तीन साल की किशोरावस्था में ही गुलदार नरभक्षी हो रहे हैं। मारे गए आदमखोर गुलदारों के आंकड़े तो यही कह रहे हैं। इसे फूड चेन का असंतुलन कहें या इकोसिस्टम की गड़बड़ी कहें या फिर कुछ और, यह गहन अध्ययन का विषय है, लेकिन मौजूदा हालात ने सभी को चिंता में डाल दिया है। उत्तराखंड में पसरे वन्यजीवों के खौफ के मामले में गुलदार पहली पायदान पर है। मानव और गुलदार में छिड़ी जंग के चिंताजनक स्थिति में पहंुचने का अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि गुलदारों के हमलों से राज्य गठन के बाद अब तक ढाई सौ से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी है। 89 गुलदार आदमखोर घोषित हुए, जिनमें से 44 को मार गिराया गया। आदमखोर गुलदारों की जो तस्वीर सामने आ रही है, उसने सभी को हैरत में डाल लिया है। तीन सालों के परिदृश्य को ही देखें तो मारे गए 19 नरभक्षी गुलदारों में करीब पचास फीसदी की उम्र तीन से आठ साल के बीच थी। अमूमन, उम्रदराज होने, कैनाइन व नाखून घिसने अथवा टूटने से शिकार करने में अक्षम होने पर ही गुलदारों के नरभक्षी होने की बात सामने आती है, लेकिन जो तस्वीर है उससे यह धारणा भी टूटी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इको सिस्टम में गड़बड़ी, फूड चेन में इनबैलेंस, पानी व शिकार की कमी जैसे कारण इसके पीछे मुख्य वजह हो सकते हैं। इस पर गंभीरता से अध्ययन की जरूरत है, ताकि समस्या से निबटने को रणनीति बन सके।
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