जल ही जीवन है। जल को जीवन की संज्ञा दी गई है, क्योंकि जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। मनुष्य सहित पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जंतु एवं वनस्पति का जीवन जल पर ही निर्भर है। जल का कोई विकल्प नहीं है। यह हमें प्रकृति से प्राप्त नि:शुल्क उपहार है, किंतु विडंबना यह है कि पृथ्वी की सतह का 70 प्रतिशत हिस्सा जलमग्न होने के कारण न तो मानव द्वारा निजी उपयोग में लाया जा सकता है और न ही इस पर कृषि कार्य हो सकता है। मानवीय उपयोग के लिए उपलब्ध 2.5 प्रतिशत हिस्से में भी एक प्रतिशत हिस्सा हिमकृत अवस्था में और दशमलव पांच प्रतिशत नम भूमि के रूप में है, जिसका उपयोग विशेष तकनीक के बिना संभव ही नहीं। इस तरह कुल जल का मात्र एक प्रतिशत मानव उपयोग के लिए उपलब्ध है। हमारे देश में भूजल या भूमिगत जल के समृद्ध भंडार हैं और यह जलापूर्ति का महत्वपूर्ण स्रोत है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की 90 प्रतिशत आपूर्ति भूजल पर निर्भर है। इसी प्रकार फसलों की सिंचाई में भूजल की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत तक है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक और देश के साढ़े चार लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भूजल स्तर इतना नीचे आ गया है कि रिचार्ज के लिए कृत्रिम उपायों की जरूरत है। बढ़ती आबादी, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और उपलब्ध संसाधनों के प्रति लापरवाही ने मनुष्य के सामने जल संकट खड़ा कर दिया है। विश्व में पानी के नष्ट होने के तौर-तरीकों के तथ्य चौंकाने वाले हैं। आज दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइपों के वॉल्व खराब होने के कारण रोजाना 17 से 44 प्रतिशत पानी बह जाता है। भारत के ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी के लिए लोगों को रोजाना औसतन चार मील पैदल चलना होता है। इजरायल में औसतन 10 सेमी वर्षा होती है और इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है। वहीं भारत में औसतन 50 सेमी से भी ज्यादा वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी है। इसी तरह जलजनित रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है। महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रकृति मनुष्य की जरूरतों को तो पूरा कर सकती है, परंतु एक के भी लालच को नहीं। आज प्राकृतिक संसाधनों के बड़े पैमाने पर दोहन का ही परिणाम है कि विश्व में जहां-तहां प्रकृति की विनाशलीला दिखाई पड़ती है। जापान में बड़े पैमाने पर भूकंप और सुनामी इन्हीं सब का कारण है। हमें समझना होगा कि वास्तव में जल संरक्षण से ही जीवन संरक्षण संभव है। आज हमारे देश में शुद्ध पेयजल एक गंभीर और ज्वलंत समस्या है। कितनी विडंबना कि गंगा और गोदावरी का देश भारत भी प्यासा है। भारत का कोई ऐसा अंचल नहीं है जहां शुद्ध पेयजल की समस्या न हो। आज देश की लगभग सभी नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं और उनका पानी पीने के लायक नहीं है। नदियों की साफ-सफाई के लिए जितना पैसा, बजट आता है उसका सिर्फ 20 प्रतिशत उपयोग होता है और शेष 80 प्रतिशत भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। वास्तव में जल संरक्षण इस सदी की आवश्यकता है। यह हम सबकी सामुदायिक जिम्मेदारी है। जल है तो कल है। जब से जल संकट के बारे में विश्व में चर्चा शुरू हुई, एक जुमला चल निकला कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। अब समय आ गया है कि हम पानी की एक-एक बूंद का महत्व समझें। जल संरक्षण की शुरुआत हम अपने घर, गांव व आसपास से शुरू करें। वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी अपने मकानों की छत से गिरने वाले वर्षा जल को रेन हारवेस्टिंग तकनीक से वापस भूमि में भेजकर भूमिगत जल का स्तर बढ़ा सकते हैं। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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