Friday, April 22, 2011

व्यवस्था में सुपरबग


ब्रिटिश पत्रिका लासेंट में छपे शोध पत्र में दिल्ली के पानी में सुपरबग बैक्टीरिया होने का दावा किया है। इस पत्रिका ने पिछले साल भी ऐसा ही दावा किया था। सुपरबग ऐसे बैक्टीरिया होते हैं जिन पर किसी भी एंटीबॉयोटिक दवा का असर नहीं होता। हालांकि पिछले दिनों सरकार ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था, परंतु अब खुलासा हुआ है कि दिल्ली सरकार द्वारा नल के पानी के 50 नमूनों में से दो में तथा तालाब व गड्ढों के 171 नमूनों में से 51 में सुपरबग जीवाणु मिले हैं। खास बात यह है कि इन नमूनों में कुल 11 प्रकार के बैक्टीरिया पाए गए हैं। कार्डिफ यूनिवर्सिटी के टिमोथी वॉल्स और डॉ. मार्क टॉलेमन ने दिल्ली के पेयजल के नमूनों की जांच की थी। शोधकर्ताओं ने दावा किया कि दिल्ली के चार फीसदी पेयजल और तीस फीसदी गंदे पानी में बैक्टीरिया के एनडीएम-1 जीन पाए गए हैं। ये वही जीन हैं जो व्यापक तौर पर प्रयोग किए जाने वाले एंटीबॉयोटिक्स का प्रतिरोध करते हैं। इन तथ्यों के अलावा उस सैंपल में पेचिस और हैजे के जीवाणु भी पाए गए हैं। इस मुद्दे पर इतनी खतरनाक रिपोर्ट आने के बावजूद सरकार द्वारा पेयजल की शुद्धता के लिए कदम न उठाए जाना आश्चर्यजनक है। दिल्ली में दूषित पेयजल की आपूर्ति तथा भूजल के पीने योग्य न रह जाने की घोषणा सरकार खुद करती रही है। दिल्ली के पानी में आर्सेनिक के साथ-साथ अनेक नुकसानदायक रसायनों की मौजूदगी की खबरें पिछले दिनों आती रही हैं। यमुना के जल के प्रदूषित होने की खबरें तो किसी से छिपी नहीं हैं। शायद यही कारण है कि सार्वजनिक नलों तथा गंदे पानी के नमूनों में खतरनाक जीवाणुओं का पाया जाना अब सरकार के लिए कोई खास बात नहीं रह गई है। सुपरबग संबंधी यह रिपोर्ट भारत में सवालों के घेरे में है। कुछ विशेषज्ञ इस रिपोर्ट को भारत के खिलाफ दुष्प्रचार मान रहे हैं। सच यह है कि चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में भारत की पूरे विश्व में धाक है। विदेशों की कई एजेंसियां विकासशील देशों में ऐसी शोध रिपोर्ट को प्रचारित-प्रसारित करके अपने व्यावसायिक हितों की पूर्ति करना चाहती हैं। ऐसी विदेशी एजेंसियों ने ही पहले आयोडीन व एचआइवी वायरस का हौव्वा खड़ा किया और अब एनडीएम 1 (नई दिल्ली मेटैलो-बीटा-लैक्टामेज) सुपरबग के नाम पर चिकित्सा पर्यटकों को दिल्ली आने से रोकने की साजिश की जा रही है। सस्ते इलाज के कारण हर वर्ष 10 लाख से भी अधिक व्यक्ति भारत में चिकित्सा कराने आते हैं। इसीलिए भारत में चिकित्सा पर्यटन का कारोबार 31 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया है। सीआइआइ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2012 तक चिकित्सा पर्यटन का कारोबार दो अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। यही कारण है कि चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदमों से पश्चिमी मुल्क परेशान हैं। पश्चिम के देशों को भय है कि यदि भारत ने इस क्षेत्र में और प्रगति की तो चिकित्सा का बड़ा कारोबार उनके हाथ से छिन जाएगा। बेंगलूर के नारायण हार्ट इंस्टीट्यूट के चिकित्सकों के अनुसार लासेंट के इस अध्ययन की प्रायोजक वे विदेशी कंपनियां हैं, जो सुपरबग जीवाणु के लिए एंटीबॉयोटिक्स तैयार करना चाहती हैं। उन्होंने कहा है कि आखिर ऐसा शोध करने की भारत में ही आवश्यकता क्यों पड़ी? इस संदर्भ में पश्चिम के वैज्ञानिकों का स्पष्ट मत है कि एनडीएम-1 नामक जीन भारत के अलावा पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी पाया जाता है। इसके साथ-साथ इस जीन की पहुंच अब ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और हॉलेंड तक हो चुकी है। रिपोर्ट पर उठने वाले इन सवालों के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज नागरिकों को जो पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है वह दूषित है। शुद्ध पेयजल की आपूर्ति कराने में सरकार की विफलता के कारण ही आज मानवीय संस्कृति के अपरिहार्य तत्व से बाहर निकलकर जल एक व्यावसायिक उत्पाद का हिस्सा बन रहा है। एनडीएम-1 के रूप में सुपरबग की मौजूदगी जल के प्रति हमारी संक्रमित सोच और लापरवाही का ही दुष्परिणाम है। यदि हम पेयजल का प्रदूषण नहीं रोक सकते तो फिर धरती को बचाने का भरोसा कैसे दिला सकते हैं? सरकारें जिस प्रकार से घाटे व मुनाफे के आधार पर कार्य कर रही हैं उससे भविष्य में ऐसे ज्वलंत मुद्दों पर प्रभावी कार्ययोजना बनाने एवं उस पर अमल कराने के लिए नागरिक समाज को आगे आना होगा। ध्यान रहे सरकारों के कानों को तभी धमक सुनाई देती है जब समाज के ज्वलंत मुद्दों पर जनांदोलन का डंका बजता है। शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के मामले में सरकारों की हीलाहवाली तथा म्यूनिसिपल संस्थाओं की लापरवाही ने ही प्राकृतिक जल को इस दुर्दशा में पहुंचाया है। सुपरबग जैसे जीवनरक्षक मुद्दे पर भी सिविल सोसाइटी को एक बहस छेड़नी होगी। तभी जल के मुद्दों पर सरकारों की नींद टूटेगी और पेयजल व्यापारिक कॉमोडिटी से बाहर निकल सकेगा। (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं).

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