दिल्ली-एनसीआर में पानी की गुणवत्ता जहां लोगों को डरा रही है, वहीं इसकी उपलब्धता भी एनसीआर प्लानिंग बोर्ड के लिए चिंता का विषय बन गई है। खासकर तब जबकि जल प्रबंधन के लिए बनाया गया क्षेत्रीय प्लान-2001 पैसे और कार्यनीति के अभाव में पूरी तरह बिखर गया है। अगले दस वर्षो में दिल्ली-एनसीआर में अकेले पानी के इंतजाम पर सालाना लगभग हजार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। इसमें कोताही हुई तो राजधानी को पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। यमुना, हिंडन और काली नदियों से घिरी दिल्ली को पानी परेशान करने वाला है। यहां जल प्रबंधन के लिए ठोस काम नहीं हो रहा है। बढ़ते शहरीकरण ने राजधानी में भूजल के पुनर्भरण (रीचार्ज) में अवरोध खड़ा कर दिया है। एनसीआर प्लानिंग बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली-एनसीआर के महज 2.9 प्रतिशत क्षेत्र में भूजल रीचार्ज हो रहा है, जबकि जरूरत कम से कम पांच फीसदी की है। दूसरी तरफ वितरण के दौरान 30 से 50 फीसदी पानी का हिसाब-किताब आंकड़ों से गायब हो जाता है। इसे 15 फीसदी तक सीमित किए बिना पानी बचाना मुश्किल है। दिल्ली में फिलहाल प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति 225 लीटर पानी की उपलब्धता है, लेकिन एनसीआर क्षेत्र में मेरठ से लेकर पानीपत तक उपलब्धता आधी से भी कम है। एनसीआरपीबी का आकलन है कि 2021 तक दिल्ली एनसीआर में प्रतिदिन 11,984 मिलियन लीटर पानी की जरूरत होगी। भूजल रीचार्ज की पूरी व्यवस्था हो तो दिल्ली-एनसीआर में प्रतिदिन 1,816 मिलियन लीटर पानी रीचार्ज हो सकता है। अतिरिक्त पानी की उपलब्धता के लिए अगले दस वर्षो में हर साल लगभग हजार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। हालांकि आगामी 12वीं योजना अवधि के लिए केंद्र सरकार ने कमर कसनी शुरू कर दी है, परंतु पिछले अनुभव डरा रहे हैं। दरअसल, राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय पूरी तरह योजना फंड पर निर्भर होते हैं। ऐसे में केंद्र को ही पूरी जिम्मेदारी उठानी पड़ सकती है|
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