Friday, April 8, 2011

बाघों का बढ़ता कुनबा


बाघों की गणना पर  लेखक के विचार
हाल ही में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि अब देश में बाघों की संख्या 1411 से बढ़कर 1706 हो गई है। कुल 295 बाघों की बढ़ोतरी दर्ज की गई है जो लगभग 12 फीसदी है। वर्ष 2006 में हुई गणना के समय बाघों की संख्या 1411 थी। पिछली बार सुंदरबन में बाघों की गिनती नहीं हो पाई थी, लेकिन इस बार वहां भी बाघों की गणना की गई है। मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में बाघों की संख्या कम हुई है। बाघों की संख्या बढ़ने के बावजूद यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तमाम कोशिशों के बावजूद भी बाघों का शिकार नहीं रुक पा रहा। पिछले दिनों बाघों पर हुए एक अंतरराष्ट्रीय शोध में यह बात सामने आई कि बाघों के 42 Fोत स्थानों मे से 18 स्थान भारत में हैं। ये सभी स्थान बाघों के लिए आखिरी उम्मीद हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पशुओं के अंगों का व्यापार करने वाले एक व्यापारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि तुम बाघों और तेदुओं की खाल बेच रहे हो इस तरह से तो देश में बाघों और तेदुओं का सफाया हो जाएगा एक दिन ऐसा आएगा कि जब मनुष्य की खाल का व्यापार भी किया जाएगा और तुम मनुष्य की खाल तक बेचने लगोगे। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से स्पष्ट है कि देश में अभी भी बडे पैमाने पर बाघों का व्यापार हो रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया के कुछ बचे-खुचे बाघों के आवास का दायरा भी सिमटता जा रहा है जो अब सिर्फ एक लाख वर्ग किमी है। शोध में शामिल जॉन राबिनसन का कहना है कि एक प्रजाति के रूप में बाघ अंतिम सांसें गिन रहा है। बाघों की स्थिति अत्यंत चिन्ताजनक है, लेकिन इसका संरक्षण करने वाले जानते हैं कि इन्हें बचाने के लिए क्या किया जाना है। पूरे विश्व समुदाय के साथ मिलकर बाघों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। शोध में शामिल इंडोनेशिया की डेबी मार्टियर का कहना है कि अगर दुनिया का यही दृष्टिकोण रहा तो बहुत ही खराब स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। शोध के अनुसार भारत के 18 स्थानों के अलावा इंडोनेशिया में आठ, रूस में छह और कुछ अन्य एशिया में हैं। देश के विभिन्न संरक्षित वन्य क्षेत्रों में शिकार, मानव गतिविधियों और कुछ अन्य कारणों से बाघों पर संकट मंडरा रहा लेकिन बाघों की संख्या में बढ़ोतरी का समाचार सुखद है। पिछले दिनों खबर आई कि सरिस्का का जंगल बाघों के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान साबित हो रहा है। इसका कारण यह है कि सरिस्का में बाघों के भोजन के लिए पर्याप्त संख्या में जानवर उपलब्ध हैं। इसके साथ ही यहां मानवीय गतिविधियां भी काफी कम हैं। इन बाघों पर जुलाई 2008 से नजर रखने वाले वैज्ञानिकों के एक दल के अनुसार सरिस्का में बाघ समाप्त होने के बाद यहां रणथंभौर से बाघों को लाया जाना देश का अब तक का सबसे सफल स्थानांतरण है। एक नर और मादा बाघ को रणथंभौर से जून 2008 में लाया गया था। इसके बाद मार्च 2009 में एक और मादा बाघ को यहां लाया गया। वैज्ञानिकों के दल ने पाया कि रेडियो कॉलर लगाकर सरिस्का में छोडे जाने के बाद नर और मादा बाघ दोनों अलग-अलग दिशाओं में गए। दोनों अलग-अलग क्षेत्रों में रहने लगे और सितंबर 2008 तक एक-दूसरे से नहीं मिले। जीपीएस प्रणाली के जरिये पहली मादा बाघ के 463 तथा दूसरी मादा बाघ द्वारा भ्रमण किए गए 229 स्थानों को चिह्नित किया गया। दरअसल बाघ और अन्य जीव-जंतु हमारे पारिस्थितिक तंत्र के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम अपने स्वार्थ के लिए पारिस्थितिक तंत्र की इस महत्वपूर्ण कड़ी को समाप्त करने पर तुले हुए हैं। सरकार इस संबंध में योजनाएं बनाकर भूल जाती है तो आम जनता ऐसे मुद्दों से कोई सरोकार नहीं रखती। हमें यह समझना होगा कि हमारे अस्तित्व के लिए पारिस्थितिक तंत्र का सुरक्षित रहना जरूरी है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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