गो और नो-गो के मुद्दे पर वन व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश थोड़े और ढीले पड़े हैं। देश के लगभग तीन चौथाई कोयला ब्लॉकों से कोयला निकालने के रास्ते में वन व पर्यावरण मंत्रालय अब अड़ंगा नहीं डालेगा। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह (जीओएम) की गुरुवार को हुई दूसरी बैठक में यह सहमति बनी। माना जा रहा है कि इस फैसले से देश में कोयला उत्पादन बढ़ेगा। खास तौर पर झारखंड, ओडीशा के कई ब्लाकों में फिर से कोयला निकालने का काम शुरू हो सकेगा। प्रधानमंत्री ने कोयला खनन में गो व नो-गो की परिभाषा की वजह से आई दिक्कतों को दूर करने के लिए इस जीओएम का गठन किया है। आज इसकी दूसरी बैठक थी। समूह के एक वरिष्ठ सदस्य ने आज की बैठक में कोयला उत्पादन में कमी की वजह से आर्थिक विकास दर पर पड़ने वाले असर की बात कही। इसके बाद ही कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने यह प्रस्ताव किया कि ऐसे कोयला ब्लॉक जिनसे वन व पर्यावरण को बड़ा खतरा नहीं है, उनमें कोयला निकालने की मंजूरी दी जानी चाहिए। इस प्रस्ताव का स्टील मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने जोरदार समर्थन किया। वन व पर्यावरण मंत्री को इस प्रस्ताव पर सहमति दिखानी पड़ी। सूत्रों के मुताबिक इस फैसले का व्यापक असर होगा। गो और नो-गो की वजह से लगभग 203 कोयला ब्लॉक प्रतिबंधित हैं। इनमें से 70-72 फीसदी को लेकर बहुत ज्यादा समस्या नहीं है। अब यहां फिर से कोयला निकाला जा सकेगा। वन व पर्यावरण मंत्रालय क्रमवार तरीके से इन परियोजनाओं को मंजूरी देगा। इन ब्लॉकों के प्रतिबंधित होने से वर्ष 2010-11 में कोयला उत्पादन में भी कमी आई थी। सरकार ने पहले वर्ष 2011-12 में 71.3 करोड़ टन कोयला उत्पादन का अनुमान लगाया था। मगर गो और नो-गो के चक्कर में इसके घट कर 63 करोड़ टन रह जाने के आसार बन गये थे। सूत्रों के मुताबिक अगर जीओएम में बनी सहमति को शीघ्रता से लागू किया जाता है तो कोयला उत्पादन सात करोड़ टन और बढ़ सकता है। दो हफ्ते बाद जीओएम की एक और बैठक होगी। उसके बाद ही अंतिम प्रस्ताव तैयार किया जाएगा|
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