Tuesday, April 5, 2011

यूपी में पर्यावरण पर नजर रखेगा निगरानी दस्ता


देर से सही, पर्यावरण निदेशालय को अधिकार मिल ही गए। राज्य सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986) के तहत निदेशालय को यह अधिकार दे दिया है कि वह न केवल औचक जांच कराएगा बल्कि अधिनियम के तहत कार्रवाई के लिए प्रमुख सचिव पर्यावरण को संस्तुति भी भेजेगा। यही नहीं जिलाधिकारियों की यह जिम्मेदारी होगी कि पर्यावरण एक्ट के दोषियों पर कार्रवाई कर निदेशालय को अवगत कराएं। पर्यावरण संरक्षण एक्ट के तहत नमूनों को एकत्र करने व उनकी कोडिंग कर अधिकृत प्रयोगशाला को जांच के लिए भेजने की जिम्मेदारी निदेशालय की होगी। नमूने एकत्र करने का काम निगरानी दस्ते का होगा। प्रमुख सचिव पर्यावरण आलोक रंजन के 23 मार्च को जारी शासनादेश के अनुसार पर्यावरण संरक्षण एक्ट के तहत जो भी प्रदूषण संबंधी जो भी शिकायतें प्राप्त होंगी उनकी जांच निगरानी दस्ते के माध्यम से कराई जाएगी। 1986 में बनाए गए पर्यावरण संरक्षण एक्ट को अब शासनादेश से नई धार मिलेगी। बीते 25 वर्षो से अधिनियम को प्रभावी रूप से लागू कराने में राज्य सरकार फिलहाल अब तक विफल रही थी। कारण यह था कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए प्रक्रिया स्पष्ट नहीं थी। अधिनियम तो बना दिए गए थे परंतु पर्यावरण निदेशालय की भूमिका स्पष्ट नहीं थी। इसके चलते प्रदेश में बायोमेडिकल वेस्ट, नगरीय ठोस कचरा, औद्योगिक प्रदूषण, पॉलीथिन अधिनियम, ध्वनि प्रदूषण, हैजार्डस वेस्ट जैसे दर्जनभर अधिनियमों को प्रभावी रूप से लागू नहीं कराया जा पा रहा था। निगरानी दस्ते में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व पर्यावरण विभाग के अधिकारी शामिल होंगे। खास बात यह है कि जिस क्षेत्र की शिकायत होगी उस क्षेत्र के अधिकारी निगरानी दस्ते का हिस्सा नहीं होंगे। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत कार्यो की समीक्षा पर्यावरण निदेशालय द्वारा की जाएगी और समय-समय पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से परामर्श कर नीति संबंधी प्रस्ताव शासन को भेजे जाएंगे। माना जा रहा है कि अब तक मूकदर्शक बना निदेशालय पर्यावरण अधिनियम को धार दे पाएगा|

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